मध्यप्रेदश में शिक्षा जगत को दहला देने वाली व्यापमं घोटाला जिसमें मेडिकल कॉलेजों के दाखिले में फर्जीवाड़े की घटना सामने आई थी जिसमें कई पुलिस वाले और बड़े नेताओं की संलिप्तता थी। कुछ इसी के इर्द गिर्द बनी फिल्म "हलाहल" जिसे निर्देशित किया है रणदीप झा ने यह बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म है। इससे पहले उन्होंने वासना की कहानी, निखिल आडवाणी की हीरो(2015) में छोटी भूमिका में अभिनेता और अग्ली(2013) में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर काम किया है। इसे फिल्म की कहानी गैंग्स ऑफ वासेपुर के लेखक ज़ीशान कादरी ने लिखा है और स्क्रीनप्ले जिब्रान नूरानी ने लिखा है। इस फिल्म को एरोस नाउ पे रिलीज किया गया है।

फ़िल्म की कहानी एक अर्चना नाम की लड़की से शुरू होती है। जो एक मेडिकल स्टूडेंट है। उसका एक्सीडेंट हो जाता है और कुछ लोग उसे जला देते हैं। लेकिन उसके पिता(सचिन खेडेकर) को अपनी बेटी पे पूरा भरोसा रहता है कि वह आत्महत्या नहीं कर सकती। उसकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी उसका ब्लड ग्रुप गलत होता है जिससे उन्हें और यकीन हो जाता है। वह इसकी जांच की बात करते हैं। लेकिन पुलिस वाले उनका साथ नहीं देते है क्योंकि उनकी भी इसमें संलिप्तता होती है। पुलिस ऑफिसर युसूफ कुरैशी(बरुण सोबती) जो पैसे लेकर उनकी मदद करता है। दोनों सबूत की तलाश में लग जाते हैं।
रिव्यु
फिल्म में अगर किसी ने ज्यादा प्रभावित किया है तो वो हैं सचिन खेडेकर उनके चेहरे पे हर संवाद के भाव झलकते दिखते हैं। इससे पहले भी उन्हें सिंघम,रुस्तम जैसे फिल्मों में हम देख चुके हैं। यूसुफ का किरदार थोड़ा मजाकिया रखा गया है जो दर्शकों को बीच-बीच में ठहाके लगाने का मौका देता है। बरुण सोबती इस किरदार से न्याय करते नजर आए हैं। मनु ऋषि चड्डा का अभिनय एक नेता के रूप में अच्छा रहा है। फिल्म की डायरेक्शन अच्छी है उत्तर प्रदेश के छोटी गलियों से लेकर बड़े जगहों को अच्छे से शूट किया गया है इसके लिए तारीफ करनी होगी रणदीप जा की। जीशान कादरी और जीब्रान नूरानी ने इस कहानी को रोमांचक बनाने की भरपूर कोशिश की है जिसमें वो काफी हद तक वो कामयाब भी हुए हैं। लेकिन फिल्म शुरुआत में जितनी रोमांचित महसूस होती है वो इनटरवल के बाद कहीं खो सी जाती है। फिल्म में कुछ डॉयलोग "फिल्मों ने नाम खराब कर रखा है हम तो टाइम पे पहुँचते हैं , इस देश में जब भी कोई बच्चा पैदा होता है तो उसके माँ बाप डॉक्टर और इंजीनियर ही बनाना चाहते हैं लेकिन सब मेरीट पर सीट नहीं निकाल पाते फिर पैसा मेरिट बनता है" जैसे डायलॉग जो इसे और महत्वपूर्ण बनाते हैं। जो बताते हैं कि वो माँ-बाप भी इन करप्शन के दोषी हैं। जो इन सब के लिए पैसा
देते हैं। इस फिल्म का क्लाइमेक्स आम फिल्मों से थोड़ा अलग है जो शायद कुछ लोगों को पसंद न आये। ये फिल्म शिक्षा जगत में हो रही फर्जीवाड़े और चर्चित व्यापमं घोटाले को जानने के लिए देखी जा सकती है।
🖋️सूर्याकांत शर्मा🖊️
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