हंसल मेहता द्वारा निर्देशित फिल्म "छलाँग" खेल-कूद में वक्त जाया करने जैसी धारणा को कटघरे में खड़ा करती है। इस फिल्म को अमेज़न प्राइम वीडियो पे रिलीज किया गया है। हंसल मेहता की इसी साल आई वेब सीरीज सकैम 1992 को लोगों ने भरपूर प्यार दिया था।
कहानी : फिल्म की कहानी मोंटू सर(राजकुमार राव) से शुरूहोती है। वह हरियाणा के किसी सेकेंड्री स्कूल में फिजिकल ट्रेनिंग का टीचर है। जो अपने पिता कमलेश सिंह हुड्डा(सतीश कौशिक) के पैरवी पर नौकरी पाता है। पीटीआई उसके लिए सिर्फ एक नौकरी है। वह उसको उतना संजीदगी से नहीं लेता है। वह अपनी क्लास की पीरियड दूसरे विषय के शिक्षकों को दे देता है। उसकी अपने शिक्षक मास्टर जी (सौरभ शुक्ला) से खूब जमती है। उसी स्कूल में कंप्यूटर शिक्षिका के रूप में नीलिमा (नुसरत भरूचा) जिसे मोंटू अपना दिल दे बैठता है। लेकिन वह नीलिमा के पिता (राजीव गुप्ता) और माँ (सुपर्णा मारवाह) को प्रेमी जोड़ा समझ कर बदसलूकी करता है। जिसमें उसका दोस्त डिम्पी (जतीन सर्ना ) सहयोग करता है, जिसकी वजह से उसका इम्प्रेशन नीलिमा के सामने खराब हो जाता है,लेकिन मोंटू नीलिमा से दोस्ती कर लेता है। मोंटू का सम्बन्ध नीलीमा से गहरा हो ही रहा होता है। की स्कूल में नए पीटीआई के तौर पर सिंह सर (मोहम्मद जीशान अय्यूब) आते हैं जो पीटीआई की शिक्षा ग्रहण किये हुए होते हैं। और मोंटू को सहायक के तौर पर रखा जाता है।और सिंह सर नीलिमा से बातें करना मोंटू से सहा नहीं जाता है। और वो एक टूर्नामेंट के आयोजन करवाने की बात स्कूल के प्रिंसिपल से करता है जिसमें वो अपनी अपनी टीम की जीत का शर्त लगाता है। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोंटू सर अपनी टीम को टूर्नामेंट जिता कर अपनी नौकरी और छोकरी बचा पाते हैं या नहीं।
रिव्यू :- फिल्म की लेखनी में सहजता दिखती है,फिल्म ठहाके के साथ अपनी बात कहती है। फिल्म में कुछ जानदार डॉयलॉग हैं,जो प्रभावित करते हैं। जीशान क़ादरी,लव रंजन और असीम अरोड़ा ने कहानी को अपनी स्क्रिप्ट में पनपने दिया है। क्लाइमैक्स में थोड़ी और रोमांच भरने कि आवश्यकता थी। राजकुमार राव इसी तरह के किरदार के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने अपने अदाकारी से दर्शक को ठहाके लगाने और भावुक होने पर मजबूर किया है। उनके साथी कलाकार नुसरत भरूचा,सतीश कौशिक, जतीन सर्ना और मोहम्मद जीशान अयूब ने भी शानदार अभिनय किया हैै,और राजकुमार राव के कीरदार को खुलने में सहयोग किया है मोंटू की माँ के किरदार में बलजिंदर कौर ने भी ध्यान आकर्षित किया है। हंसल मेहता की समाजिक मुद्दों पे फिल्में आती रही हैं। लेेेकिन सम्भवतः यह उनकी पहली फिल्म है जिसमें उन्होंने हास्य और स्पोर्ट्स की केमेस्ट्री दिखाई है।फिल्म की क्लाइमेक्स से ज्यादा आखरी क्षणों में राजकुमार राव की दी गई स्पीच प्रभावित करती है। जिसमें उनका एक संवाद "हमारे देश में हर कोई चाहता है कि मेरा बेटा सचिन तेंदुलकर बने, बेटी साइना नेहवाल बने पर सचिन और साइना का माँ-बाप कोई ना बनना चाहता" जैसे संवाद ने मन मोह लिया औऱ इस संवाद ने लगभग फिल्म की पूरी कहानी बयां कर दी। फ़िल्म का जोश से भरा गीत 'ले छलाँग' फिल्म की कहानी के अनुकूल है। फिल्म एक और गाना "दीदार दे" भी आकर्षक का केन्द्र रहा है जिसमें नुसरत ऑर राजकुमार राव गुड लुकिंग लगे हैं।
हंसल मेहता की छलाँग एंटरटेनमेंट के साथ एक सार्थक संदेश से भरी फिल्म है। जिसे एक बार देखना तो बनता है।
✍️सूर्याकांत शर्मा
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