सबसे पहले जानते है त्रिभंग का मतलब! 'त्रिभंग’ एक ओडिसी नृत्य का पोज़ है। जिसमें डांसर का शरीर तीन अलग-अलग दिशाओं में बेंड हुआ होता है। फ़िल्म की कहानी भी कुछ ऐसे ही बातों को दर्शाती है। तीन महिला किरदार, अलग-अलग नज़रिए और सोच के। ये तीन जनरेशन्स की कहानी है। अचानक हुई एक घटना की वजह से एक टूटे परिवार की तीन पीढ़ियों की महिलाएं साथ आती हैं और यहां उन्हें मौका मिलता है भागती-दौड़ती जिंदगी में पीछे मुड़कर देखने का अपने रिश्तों को, अपने फैसलों को, एक दूसरे के बारे में अपने विचारों को। फ़िल्म निर्माता रेणुका शहाणे की 'त्रिभंग' इन्हीं मां-बेटी के बनते बिगड़ते रिश्तों की कहानी कहती है। साथ ही साथ फिल्म ने कई जरूरी सामाजिक मुद्दों को दर्शाया है।
★कलाकार : काजोल, तन्वी आजमी, मिथिला पालकर, मानव गोविल, कंवलजीत, वैभव तत्वावाडी
★लेखक और निर्देशक : रेणुका सहाणे
★निर्माता : अजय देवगन और पराग देसाई
★ओटी टी : नेटफ्लिक्स
★रेटिंग : 3.5 स्टार
क्या है फ़िल्म की कहानी :
कहानी तीन जेनरेशन की है, नयनतारा, अनु और माशा तीन महिलाएं। नयन की बेटी अनु हैं और अनु की बेटी माशा। नयन(तन्वी आजमी ) एक लोकप्रिय लेखिका हैं, उनकी बेटी अनु (काजोल ) अभिनेत्री हैं, बेटी माशा (मिथिला )सिम्पल हाउस वाइफ। नयन जिंदगी में लिखने से अधिक महत्व किसी को नहीं देती है, जाहिर है कि महिलाओं को, अक्सर ही करियर के सामने परिवार को तरजीह देने की बात कही जाती है और कई महिलाएं ये करती भी हैं, दबाव में आकर। लेकिन नयन ने ऐसा नहीं किया। वह अपने दोनों बच्चे अनु और रविंद्रो (विवेक) को लेकर अलग हो जाती है, लेकिन उनके बच्चे पिता से अलग नहीं होना चाहते थे। ऐसे में अनु और रविन्द्रो की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आते हैं।
आगे चल कर अनु एक्ट्रेस बन जाती है, रविन्द्रो आध्यात्म की तरफ मुड़ जाते हैं। दोनों बच्चे नयन अपनी माँ से दूर होते जाते हैं। नयन अपनी ऑटो बायोग्राफी मिलन (कुणाल रॉय कपूर ) के साथ पूरा कर रही होती है कि अचानक वो कोमा में चली जाती है। अब यहां अनु और रवि फिर से माँ से मिलते हैं। इसके बाद दर्शक माँ बेटी के रिश्ते की जटिलता को देखते हैं। माँ से हरदम शिकायत करने वाली अनु से जब उसकी खुद की बेटी सवाल करती है तो अनु को समझ आता है कि उसकी माँ को किन परिस्थितियों से गुज़रना पड़ा होगा। माँ-बेटी के रिश्ते पर आधारित यह एक बेहतरीन फ़िल्म है।
फ़िल्म की अच्छी बातें :
फिल्म की स्टारकास्ट, निर्देशन और लेखन इसके मजबूत पक्ष हैं। तन्वी आज़मी के कुछ बातें दिल को छू जाते है। प्रतिभा, जिद और जुनून के बीच बंटी इन तीन स्त्रियों की जिंदगी पर्दे पर काफी फिट बैठती है। फ़िल्म की निर्देशक रेणुका शहाणे ने खूबसूरती से इस फ़िल्म को लिखा है, और उतना ही सही निर्देशन भी किया है। 90 मिनट की ये फ़िल्म कभी भी अपने विषय से भटकती नही है। घरेलू हिंसा से लेकर बाल उत्पीड़न तक और समाज के अन्य रूढ़ीवादी मुद्दों को फ़िल्म में दिखाया गया है।
फ़िल्म की बुरी बातें :
मीडिया की बेइज्जती और खास तौर पे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की, आजकल की फिल्मों-वेबसीरीजों का मुख्य आकर्षण हो चला है। फ़िल्म में इसकी जरूरत बिल्कुल भी नहीं लगी। फ़िल्म में जबरदस्ती की गालियाँ की भी कोई जरूरत नही थी। बाकी फ़िल्म की कहानी अपनी बात कहने में काफी सक्षम नज़र आई है।
अंत में सिर्फ इतना ही कि फ़िल्म के पीछे जो प्यारी सी सोच है उसकी तारीफ जरूर होनी चाहिए। रेणुका शहाणे ने एक बेहद ही संवेदनशील विषय को छुआ और उसे बहुत ही गहराई के साथ दर्शकों के सामने पेश किया है। तो कुल मिलाकर ये फ़िल्म आपको जरूर देखनी चाहिए। हमारे तरफ से फ़िल्म को 5 में से 3.5 स्टार।
✍ पीयूष प्रियदर्शी।
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Kafi sahi review 👌🏻
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जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर विश्लेषण।।
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